एक नई आशा का जन्म
नए अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह मे शामिल होने पहुंचे 20 लाख लोगों ने जिस तरह "हड्डियाँ" जमाती ठण्ड मे बिल्कुल खुले मे बेठकर उनका भाषण सुना, वह ख़ुद भी इस भाषण जितना ही एतिहासिक था। अमेरिका मे किसी "रॉक स्टार मुजिकल" मे भले ही हजारों लोग जमा हों जायें, लेकिन किसी राजनितिक आयोजन मे 100 लोगों का जुटना भी वहां ख़बर का मसाला बन जाता है। फ़िर वह कोन सा जज्बा है, जो वॉशिंगटन डीसी मे ऐसे जनसमुद्र का सबब बन गया। क्या ये एक नई आशा का जन्म है या "आशा का दुस्साहस । अमेरिकी राष्ट्रपतियों के भाषण आम तोर पर पेशेवर लोग लिखते हैं लेकिन बताया जाता है की बराक ओबामा ने इस लिखित भाषण को ख़ुद ही अपनी खास रवानी मे ढाला था। कोई हवाई बात नही कोई फिकरेबाजी नही। संघर्ष से उपजी एक जमीनी उम्मीद उनके उस व्यक्तव्य से हर पल झलकती रही। (हालाँकि ये अलग बात है की मैं जोर्ज बुश के भाषण की वो पहली लाइन जिंदगी भर नही भूलूंगा जोकि उन्होंने सत्ता सँभालने के बाद ,पहली बार कांग्रेस/अमेरिकी जनता/ और पुरी दुनिया को संबोधित करते हुए कही थी, लेकिन इस बारे में फ़िर कभी लिखूंगा) ।
अमेरिका के लिए हालत वाकई मुश्किल हैं , सत्ता हस्तांतरण के ठीक अगले ही क्षण से दुनिया भर के राजनयिक यह टोहने मे लग गए हैं की इराक़ और अफगानिस्तान मे ओबामा तत्काल क्या पहलकदमी करने जा रहे हैं। आंकडों के हिसाब से पिछले साल अमेरिका मे २६ लाख लोग बेरोजगार हुए और उनकी तादाद आज भी रोज़-बी-रोज़ बढ रही है । ऐसे मे सभी वर्तमान और संभावित बेरोजगारों की नज़र ओबामा पर टिकी हैं की वे अगले एक-दो महीनो मे क्या करने वाले हैं।
शपथ ग्रहण और भाषण के बाद अमेरिकी बाजारों का संकेत कुछ अच्छा नही रहा। अतीत मे किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण के दिन अमेरिकी बाज़ार इतने नही गिरे थे जितने ओबामा के शपथ ग्रहण के बाद गिरे। मुझे लगता हैं की बाज़ार इसलिए गिरे क्योंकि अमेरिकी हलकों मे ये ख़बर हैं की ओबामा अपनी घोषित रणनीति के मुताबिक "पारदर्शिता" पर ज्यादा बल देंगे। दूसरी और मेंहनत- मशक्कत के जिन धंधों का आह्वान ओबामा ने अपने भाषण मे किया हैं, उसमे अमेरिकी पूंजी की रूशी कब की समाप्त हो चुकी हैं। आशा का ये दीपक अमेरिका मैं "पूंजी और श्रम" का रिश्ता दोबारा कैसे जोड़ता हैं ये देखना दिलचस्प होगा। पता नही "पूंजी और श्रम" का नाम आते ही " मार्क्स और लेनिन" क्यों याद आ जाते हैं ।