Thursday, January 22, 2009

एक नई आशा का जन्म

एक नई आशा का जन्म
नए अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह मे शामिल होने पहुंचे 20 लाख लोगों ने जिस तरह "हड्डियाँ" जमाती ठण्ड मे बिल्कुल खुले मे बेठकर उनका भाषण सुना, वह ख़ुद भी इस भाषण जितना ही एतिहासिक था। अमेरिका मे किसी "रॉक स्टार मुजिकल" मे भले ही हजारों लोग जमा हों जायें, लेकिन किसी राजनितिक आयोजन मे 100 लोगों का जुटना भी वहां ख़बर का मसाला बन जाता है। फ़िर वह कोन सा जज्बा है, जो वॉशिंगटन डीसी मे ऐसे जनसमुद्र का सबब बन गया। क्या ये एक नई आशा का जन्म है या "आशा का दुस्साहस ।
अमेरिकी राष्ट्रपतियों के भाषण आम तोर पर पेशेवर लोग लिखते हैं लेकिन बताया जाता है की बराक ओबामा ने इस लिखित भाषण को ख़ुद ही अपनी खास रवानी मे ढाला था। कोई हवाई बात नही कोई फिकरेबाजी नही। संघर्ष से उपजी एक जमीनी उम्मीद उनके उस व्यक्तव्य से हर पल झलकती रही। (हालाँकि ये अलग बात है की मैं जोर्ज बुश के भाषण की वो पहली लाइन जिंदगी भर नही भूलूंगा जोकि उन्होंने सत्ता सँभालने के बाद ,पहली बार कांग्रेस/अमेरिकी जनता/ और पुरी दुनिया को संबोधित करते हुए कही थी, लेकिन इस बारे में फ़िर कभी लिखूंगा) ।
अमेरिका के लिए हालत वाकई मुश्किल हैं , सत्ता हस्तांतरण के ठीक अगले ही क्षण से दुनिया भर के राजनयिक यह टोहने मे लग गए हैं की इराक़ और अफगानिस्तान मे ओबामा तत्काल क्या पहलकदमी करने जा रहे हैं। आंकडों के हिसाब से पिछले साल अमेरिका मे २६ लाख लोग बेरोजगार हुए और उनकी तादाद आज भी रोज़-बी-रोज़ बढ रही है । ऐसे मे सभी वर्तमान और संभावित बेरोजगारों की नज़र ओबामा पर टिकी हैं की वे अगले एक-दो महीनो मे क्या करने वाले हैं।
शपथ ग्रहण और भाषण के बाद अमेरिकी बाजारों का संकेत कुछ अच्छा नही रहा। अतीत मे किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण के दिन अमेरिकी बाज़ार इतने नही गिरे थे जितने ओबामा के शपथ ग्रहण के बाद गिरे। मुझे लगता हैं की बाज़ार इसलिए गिरे क्योंकि अमेरिकी हलकों मे ये ख़बर हैं की ओबामा अपनी घोषित रणनीति के मुताबिक "पारदर्शिता" पर ज्यादा बल देंगे। दूसरी और मेंहनत- मशक्कत के जिन धंधों का आह्वान ओबामा ने अपने भाषण मे किया हैं, उसमे अमेरिकी पूंजी की रूशी कब की समाप्त हो चुकी हैं। आशा का ये दीपक अमेरिका मैं "पूंजी और श्रम" का रिश्ता दोबारा कैसे जोड़ता हैं ये देखना दिलचस्प होगा। पता नही "पूंजी और श्रम" का नाम आते ही " मार्क्स और लेनिन" क्यों याद आ जाते हैं ।


Tuesday, December 23, 2008

नकली पथ-प्रदर्शक

मैं ख़ुद हूँ अपनी तलाश मैं, है मेरा कोई रह-गुज़र नही,
और वो क्या दिखायेंगे मुझे रास्ता, जिन्हें ख़ुद अपना पता
नहीं...

Monday, November 24, 2008

ज़िन्दगी के रंग

किसने देखा मोहब्बत का अंज़ाम, हम तो सिर्फ़ प्यार किए जा रहे हैं.............................

हाथों पे पड़ी लकीरों को क्या देखना,,,,किस्मत तो उनकी भी होती है, जिनके हाथ नही होते.................................

ज़ख्म बनते - बनते इतना नासूर हो गया है कि अब इस दर्द का अहसास ही नही होता........................................


तेरे दिए हुए ज़ख्मों को सीने से लगाये रहते हैं,,,यही तो मेरी ज़िन्दगी की हसीन यादें हैं ................................................................

Tuesday, November 18, 2008

खामोशी

हमारी ज़िन्दगी मैं ऐसे बहुत से लम्हे आते हैं जब हमें महसूस होता है की शब्द कहीं दूर छूट गए हैं और हम रह गए एकदम ----

"खामोश"

आओ कुछ लम्हों पर नज़र दोडाते हैं ...

...वो लम्हा जब बच्चा पहली बार अपने प्रियजनों को छोड़कर घर से बाहर जाता है और पीछे देखता है जहाँ उसके प्रियजन चिंतित मुद्रा मैं, किन्तु खुश होते हैं की उनका पालन आज पहली
बार
अपनी स्वतंत्र दुनिया मे कदम रख रहा है ।


... वो लम्हा जब उसने (वो लड़का/लड़की जिसे तुम सबसे ज्यादा चाहते हो) पीछे घूम कर तुम्हे मनमोहक मुस्कान दी उस वक्त तुम कुछ न कह पाये,,,सिवाए मुस्कुराने के ।

...तुम जानते थे की वो नही आएगा/आएगी, लेकिन फ़िर भी तुम्हे उसी का इंतज़ार था । और अचानक जन्मदिन की उस शाम को उसका फोन आया और उसने धीरे से कहा "जन्मदिन मुबारक" और तुम कुछ न कह सके सिवाए एक मुस्कान बिखेरने के ।

और भी ऐसे बहुत से लम्हे हमारी ज़िन्दगी से जुडे होते हैं किंतु हम कभी धयान नही देते,,,,कभी एकांत में सोचोगे तो विस्मित रह जाओगे ।

कौन हूँ मैं ???

महफिल को रंग मैं आने मे जरा वक्त लगेगा, रूठों को मानाने मैं जरा वक्त लगेगा,
चेहरे पे मेरे -गम- ने बना रक्खी हैं लकीरें, "कौन हूँ मैं"- ये बताने में जरा वक्त लगेगा।