Monday, November 24, 2008

ज़िन्दगी के रंग

किसने देखा मोहब्बत का अंज़ाम, हम तो सिर्फ़ प्यार किए जा रहे हैं.............................

हाथों पे पड़ी लकीरों को क्या देखना,,,,किस्मत तो उनकी भी होती है, जिनके हाथ नही होते.................................

ज़ख्म बनते - बनते इतना नासूर हो गया है कि अब इस दर्द का अहसास ही नही होता........................................


तेरे दिए हुए ज़ख्मों को सीने से लगाये रहते हैं,,,यही तो मेरी ज़िन्दगी की हसीन यादें हैं ................................................................

Tuesday, November 18, 2008

खामोशी

हमारी ज़िन्दगी मैं ऐसे बहुत से लम्हे आते हैं जब हमें महसूस होता है की शब्द कहीं दूर छूट गए हैं और हम रह गए एकदम ----

"खामोश"

आओ कुछ लम्हों पर नज़र दोडाते हैं ...

...वो लम्हा जब बच्चा पहली बार अपने प्रियजनों को छोड़कर घर से बाहर जाता है और पीछे देखता है जहाँ उसके प्रियजन चिंतित मुद्रा मैं, किन्तु खुश होते हैं की उनका पालन आज पहली
बार
अपनी स्वतंत्र दुनिया मे कदम रख रहा है ।


... वो लम्हा जब उसने (वो लड़का/लड़की जिसे तुम सबसे ज्यादा चाहते हो) पीछे घूम कर तुम्हे मनमोहक मुस्कान दी उस वक्त तुम कुछ न कह पाये,,,सिवाए मुस्कुराने के ।

...तुम जानते थे की वो नही आएगा/आएगी, लेकिन फ़िर भी तुम्हे उसी का इंतज़ार था । और अचानक जन्मदिन की उस शाम को उसका फोन आया और उसने धीरे से कहा "जन्मदिन मुबारक" और तुम कुछ न कह सके सिवाए एक मुस्कान बिखेरने के ।

और भी ऐसे बहुत से लम्हे हमारी ज़िन्दगी से जुडे होते हैं किंतु हम कभी धयान नही देते,,,,कभी एकांत में सोचोगे तो विस्मित रह जाओगे ।

कौन हूँ मैं ???

महफिल को रंग मैं आने मे जरा वक्त लगेगा, रूठों को मानाने मैं जरा वक्त लगेगा,
चेहरे पे मेरे -गम- ने बना रक्खी हैं लकीरें, "कौन हूँ मैं"- ये बताने में जरा वक्त लगेगा।