किसने देखा मोहब्बत का अंज़ाम, हम तो सिर्फ़ प्यार किए जा रहे हैं.............................
हाथों पे पड़ी लकीरों को क्या देखना,,,,किस्मत तो उनकी भी होती है, जिनके हाथ नही होते.................................
ज़ख्म बनते - बनते इतना नासूर हो गया है कि अब इस दर्द का अहसास ही नही होता........................................
तेरे दिए हुए ज़ख्मों को सीने से लगाये रहते हैं,,,यही तो मेरी ज़िन्दगी की हसीन यादें हैं ................................................................
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1 comment:
AUR KUCH BHI KAHIYE.............KYOKI SABKUCH ISPAST NAHI HAI
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